Tuesday, 8 October 2013

Insaaniyat



सीखा दो सलीखे जो मे भूल रहा हूँ| 
मिला दो मुझीसे जो मे भूल रहा हूँ|
खुदा ने बनाया खुदाई के ही वास्ते फिर क्यूँ मे
इंसान और शैतान के बीच झूल रहा हूँ|

नेकी और बदी की लकीरे ख़तम हो गयी|
शायद जुर्म की सज़ाए भी नरम हो गयी|
यू दफ़न मेरे दिल मे शरम हो गयी|
फटटे कफ़न मे यू ही बे-गुनाह दफ़न हो गयी|

चादर और चढ़ावा छाड़ाते पत्थर और मुरदारो पे|
ईमान तो बिक रहा है इंसान की दुकानो पे|
कितने ठंड से मरते है नंगी-नंगी रातो मे|
कितने भूख से सड़ते रहे है ऐसे हालो मे!!


खिज़र