Monday, 29 July 2013

वो स्याह सी किताब मेरी

वो स्याह सी किताब मेरी..
सतरंग लफ्ज़ भारी..

कहने को काग़ज़ के वर्के है
पर उसमे दिन हाल के चर्चे है
मीठी सी गुफतु गु
गर्द गुलाब की खुश्बू..
सुनहेरे अल्फ़ाज़..
कब्र गाड़े राज़..
खुशियो भरे मौसम..
दिल मे खल की चुभन..
वो मील के पत्‍थर सारे..
कड़वे और तेज़ चटखारे..
और भी अलग अंदाज़ है..
नज़्म और शायरी जो दिल के बहुत ख़ास है..
यारो के रंगीन से किससे..
ज़िंदगी के संगीन के हिस्से..
हालात की आँधी मे लगती ढलान..
और जब था मे खुद से अंजान..

ये वो बाते है जो लिखी मेने
ठंडी हवा के झोंको मे
गर्दिश के मौको मे..
सुकून की झलक मे..
जज़्बातो की ललक मे..
छज्जे पे – डॉली पे..
जुंग की गोली पे..
वीरान सी तन्हाई मे..
भीड़ की परछाई मे..

वो स्याह सी किताब मेरी..
सतरंग लफ्ज़ भारी..

वो स्याही नही मेरा परवाज़ है..
उसने बहे मेरे अल्फ़ाज़ है..
वो स्याही मेरी माचिस है..
जिसकी तीली से रोशन मेरा खाली पं है.
अंधेरे मे भी कुछ है..
वो मेरी आँखो का आवारापन है..
वो स्याही मुस्कुराहट है मेरी..
वो काग़ज़ चाहत है मेरी..

वो स्याह सी किताब मेरी..
सतरंग लफ्ज़ भारी..

खीज़र




Friday, 26 July 2013

कौन हूँ मे?

कौन हूँ मे?
कुछ ख़याल नही..
कुछ सवाल नही..
चुप हूँ मे..कुछ आवाज़ नही
जैसे बहता पानी शांत
पत्थर से ठोकर खाने के बाद..
उलझी कहानी और गुच्छे जैसे ख़याल
साँसे भी रवा जैसे डूबा कोई बुलबुला..
शुरुवत की झिझक और शुरूवात का ना अंत हुआ..
अंजान हूँ मे अपनी लगान से..
गुम हूँ में अजीब से सफ़र मे..
सपने भी देखे रोज़ आँखे बदलके.
पर में बेहोश हू बेज़ार हलातो मे..
मेरा ना कोई वजूद.. 
बड़ा रहा हू कोख मे मोजूद..
नये बीज डाले है खेत मे..
कोई सेलाब शायद समेटा बैठा हूँ..
हाथो मे लकीरो के बदले कल कहता हूँ..
फिर भी ज़िंदगी क़ानून मे..
कौन हूँ मे?
क्या हूँ मे?



Wednesday, 17 July 2013

पतंग


एक लड़का है पागल सा।
दिमाग उका जंगल सा।
रहते उसमे उलझन और सवाल।
पर उसकी पतंग है उसकी मशाल।
वो चिंगारी का खज़ाना है।
पर उससे अभी तक  किसी ने जाना है।
उसने  मंझा लूटा है।
वो खुद कांच की तरह टूटा है।
उम्मीद उसका आसमान है।
लेकिन वो तनहा है।
आँखों में चमक और हलकी सी मुस्कान है।
उसकी पतंग उसकी शान है।
वो दिखने में पतला थोडा नादान है।
पर उसकी पतंग उसकी शान है।
पर उसकी पतंग उसकी शान है।

ना उसको भूख की फिकर।
 सिमटा उसका जिगर।
बदलो के आगे उसके निशाँ है।
उसकी पतंग उसकी शान है।


वो ज़मीन से जुदा है।
वो  हालातो  से मुढ़ा है।
वो लकीरों को नहीं जानता।
वो किस्मत को नहीं मानता।
वो अंधेरो में रोता है।
वो सपनो में  खोता है।
वो पत्थर नहीं पानी है।
मतलबी मज़ा उसके लिए बेमानी है।
वो जानता है ऊँची उसकी उड़ान है।
उसकी पतंग उसकी शान है।
उसकी पतंग उसकी शान है।
उसकी पतंग उसकी शान है।