Friday, 26 July 2013

कौन हूँ मे?

कौन हूँ मे?
कुछ ख़याल नही..
कुछ सवाल नही..
चुप हूँ मे..कुछ आवाज़ नही
जैसे बहता पानी शांत
पत्थर से ठोकर खाने के बाद..
उलझी कहानी और गुच्छे जैसे ख़याल
साँसे भी रवा जैसे डूबा कोई बुलबुला..
शुरुवत की झिझक और शुरूवात का ना अंत हुआ..
अंजान हूँ मे अपनी लगान से..
गुम हूँ में अजीब से सफ़र मे..
सपने भी देखे रोज़ आँखे बदलके.
पर में बेहोश हू बेज़ार हलातो मे..
मेरा ना कोई वजूद.. 
बड़ा रहा हू कोख मे मोजूद..
नये बीज डाले है खेत मे..
कोई सेलाब शायद समेटा बैठा हूँ..
हाथो मे लकीरो के बदले कल कहता हूँ..
फिर भी ज़िंदगी क़ानून मे..
कौन हूँ मे?
क्या हूँ मे?



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