Thursday, 1 August 2013

बस यू ही

सुकून की झपकी.
हवा की मासूमियत को सांसो मे क़ैद कर लेना.
बस कुछ यूँ ही बैठे बैठे,
चिंटी के फलसफ़ॉ को ताड़ना बे शाबिस्ता,
दिल की खिड़की से ज़िंदगी को झाखना
आपने आँखो से खूबसूरत नज़ारे क़ैद कर लेना,
बिखरी यादो को समेटना.
ताक कर चाँद को
ज़ाहिर कर देना सारे राज़,
एक दोस्त एक राज़दार के मानिंद,
काश एक पल ठेहेर कर,
सब्र कर,
बस यू ही बे मतलब से लम्हे,
फिकर और रंजिशो की दुनिया
के साए से कही दूर चलकर देखो 
कुछ बिलवाजह की छायो मे
कभी सेर हो जाए बे-ख्वाइश तरानो मे
धड़कनो को धीमा कर,
कुछ मुस्कुराहट आज़ाद करके ठहाको की गूँज से
अपने दिल मे नयी गर्माहट को आव देना
कभी दुपककी लगाए बिना ज़ोर-आज़माइश के
यू ही!!
हवा की सरसराहट
सूरज की गर्माहट
पानी के छींटे
काग़ज़ो की बुज़ुर्गियत को बे वजह चूम के द्देखो
बस यू ही.
बे वजह
बे मतलब!

खीज़र्

2 comments: