Wednesday 14 August 2013

जो कहता हूँ वो बात पुरानी लगती है

यू तो हर रोज़ कहानी मिलती है.
जो कहता हूँ वो बात पुरानी लगती है



हर आदमी बुलबुला सा दिखता है
लहरो पे समुंदर नाम मोहब्बत लिखता है
किताबो मे दबे गुलाब सुर्ख हो गये..
रोटी हुई आँखो पे अब झूर्र सो गये..
यू तो हर रोज़ कहानी मिलती है.
जो कहता हूँ वो बात पुरानी लगती है

वो झड़के गिरा पत्ता खुद पेड़ बन गया.
बचपन की मौज अब खेल बन गया.
धीमी सी तफ़्टार यू तेज़ हो गयी
गीली मेहन्दी के हाथ रंग्रेज़ हो गयी.
बुलंद वो आवाज़ आज भी बुलंद है.
उन आँखो मे आज भी वही घमंड है..
सीना तान के बच्चे पन्ने पलटते है..
वो क़िस्से आज भी अलाव पे जलते है..
शान से साँसे खिलती है..
यू तो हर रोज़ कहानी मिलती है.
जो कहता हूँ वो बात पुरानी लगती है

खिज़र


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