Wednesday, 31 December 2014

Happy New Year के माइने

नया साल आने है वाला है! वो भी अपने आख़िरी लम्हो मे है..कुछ घंटो की दूरी बाक़ी है! उग्ग जाएगा नया सूरज भी, नयी-ताज़ा हवाए लेकर! कुछ नही तो बस यही सोच कर नया समझ लो के एक उम्मीद ही बाँध जाती है! भ्रम रहता है की 'ऑल इस वेल'! खुशियो का प्रजनांन् ऐसे ही तो होता है.. "Which goes around comes around" वाला सिद्धांत! खैर, अभी अभी तो आदत बनी थी पन्ने की शुरुवात मे 2014 लिखने की! अब फिर से नयी आदते डालनी पड़ेगी! जल्दी उत्ुंगा, exercise करूँगा, ये करना है वो करना है ये करूँगा वो करूँगा और भी ना जाने क्या-क्या फलाना धिमाका!
जिसे "New Year Resolution" की प्रवर्ती दे दी जाती है! जिससे में इंग्लीश मे कहना ही ज़्यादा सही समझता हू, क्यूंकी "नये साल के संशोधन" काफ़ी हद तक संविधानी सा लगता है!
मुद्दा ये है नया साल आने वाला है! वक़्त का F5 बटन जो ज़िंदगी के कीबोर्ड पे दबाया जाए यही सोच के रोज़-मररा के मेरे ज़ंग या अटके पड़े Applications मे सुधार आ सके!
चलो में भी तुम सबको . कर देता हूँ "Happy new year 2015" और 10 से 1 तक़ की जो गिनती मुझे खामोशी से बोलनी थी वो मेने अपने मन मे ही बोल ली!
मेने Advance मे इसलिए भी विश कर दिया के आपके पार्टी और नशे की आगोश मे ज़रा भी खलल ना पड़े. खैर, मुझे भी चाँद और हवाओ से बाते करने पड़ेंगी और ज़िंदगी से भी झूठी मूटी कसमे खानी पड़ेगी जैसे मेरी प्रेमिका से 2-4 दिन ना मिलने या महीने मे कोई फिल्म ना दिखने पर की जाती है!
"I promise" का रट्टा मार मार कर!

नया साल मुबारक!
Happy New Year!
नया साल का मतलब सबके लिए एक जैसा नही होता! समझदार लोग रेज़ल्यूशन ऐसे बनाते है जिनपे साल भर तक बरकरार भी रहा जा सके! वो धीरे धीरे करके अपने रेज़ल्यूशन्स को आकार देते है! ऐसे लोगो को बात का बतंगड़ बनाना पसंद भी नही होता! ना निकम्मे अटाले - बस वक़्त और काम के पाबंद! ये वही है जो मुस्कुराते रहते है और अपने मज़े की सीमाओ मे रहते है! जिन्हे मस्खरे लोग 'Ambitious', घरवाले या रिश्तेदार 'ये कुछ करके दिखाएगा' की संगया देते है! ना की अल्टप्पे की गेंद हर कही उछाल दी!
कुछ लोग बहुत ही नकारात्मक होते है! ऐसे ही मेरा एक बेहद नकारात्मक और अंधकारी व्यक्तित्व है मेरा कज़िन. जिससे हर दिन कारखाने से निकले डब्बो की तरह लगते है! एक समान! अंदर से भी और बाहर से भी! हमेशा कहता है जब हम उसे न्यू एअर की खुशी पर साथ मे चलने को कहते है की "हमे तो खुश होने की बजाए, दुखी होना चाहिए. हम सब की ज़िंदगी का एक और साल यूही भस्म हो गया"! फिर हमे भी लगता था के एक और साल ख़तम और हम मौत के और करीब पहुँचते जा रहे है! ये सिक्के का नीचे वाला पहलू है, जब सिक्का उछाल कर हार जीत का फ़ैसला होता है, जब नज़र की सामने वो जीत वाला पहलू तो दिखाई और सुनाई मे पड़ता है पर परछाई मे छुपा हुआ नीचे वाला पहलू नही दिखता!
पर ज़्यादातर लोगो के लिए नये साल के माइने नयी उम्मीदे, नये कपड़े, नये तजुर्बे और नये लोग है.
उनका तो रेज़ल्यूशन्स से सिर्फ़ कुछ वक़्त का वास्ता होता है! फिर रेज़ल्यूशन भाई "अल्लाह हाफ़िज़"! ख़यालो की तरह उड़ जाता है और अगर ग़लती से दीवार पर पायंट्स बना कर चिपका भी लिया तो वो आती जाती हर कुछ फ़िल्मो की तरह नज़र अंदाज़ होता है! और धीरे धीरे वो खुद ही अपने आप को फाड़ना शूरू कर देता है!

कुछ लोगो के लिए न्यू एअर मतलब आज़ादी को मानने का एक और दिन! दारू मे बहता समा, लाउड और एलेक्ट्रॉनिक म्यूज़िक मे मदहोश चीखे! ऐसे लोगो ना आगे की सोचते है ना पीछे की, ऐसे लोग आज की सोचते है, आज को जीना और आज को पीना! बस!
खैर, अच्छे से मनाओ नया साल! खुश रहो! लोगो को खुश करो! खुशी मिलेगी!

Saturday, 27 December 2014

प्यार निशब्द

प्यार कही भी और कभी भी पनप सकता है..
इश्क़ की अंकुरित बीज कही भी कोपल बन सकते है..
प्यार को पानी की संगया भी दे सकते है..
कही भी जगह बना है..
कही भी पल जाए..
और ज़रूरत पड़े तो बवाल भी बन जाए.
प्यार जिससे ना विज्ञान सुलझा पाया है.. ना कोई ग्यानि..
और ना समाज समझ पाया है..

प्यार खूबसूरत है और खूबसूरती नही देखता..
ना तराश्त है लफ्ज़..
सच कहते है प्यार अँधा होता है.. देखा सुना नही जा सकता..
सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है.. आहट पहचानता है..
बस जहा जगह दर्याफ़्त होती है.. जो वही रिस्ता जाता है..
नया रिश्ता बनता रहता है.
ईत्र है. एक मदहोशी है.
एक ख्वाब है.. और उसकी तबीर है.
रोग भी है. इलाज भी है.
ज़ख़्म भी है.. इजात है.

भूल जाता है कौनसा जिस्म पहना हुआ है..  कौनसी जात औडी है..
तब दुनिया मे सिर्फ़ दो नही..
एक ही जिस्म बाकी रह जाता है.. और उसी मे घुले हुए हिस्से.
शिकायते भी नही करता.
खामोशी को पढ़ता है.
आहट को सुनता है.

ऐसा ही होता है प्यार, बस ऐसे ही होता है प्यार!

[Img source : https://img0.etsystatic.com/012/0/6673596/il_570xN.444067078_abqv.jpg]

Wednesday, 24 December 2014

Mortal

Death is a mystry no body gonna answer
Dig more in your soul, it take you to farther
Talk to your father, Think about the Karma
I grind harder but this world is so possessed
When I stop living for others
I should stop living for my self
But i ll be there whenever u need any help
Better see myself as Book in the shelf than goon with the wealth
Not to take the ransom but to play with any grandson
Like kalam said on being handsome if u give hand to some
Just shun condemn those politicians livin in mansion
Divorse is yours, but how ur kid live with a step mom?
I wanna trigger happiness and wisdom is the gun
Not preaching but i actually want to be one
And thats what i'll teach it to my son
Never prevail the hate
Sorry! I lf i ever hurt you
Talk to me, unless you feeling like Curfew
Let you know about the sacred than prevailing hatred
t-shirt shed red in extremist trap race
Stop embracing your religion, caste you born into
Stop embracing your mother who born you
Everybody have the problem they been gone thru
Become "Yourself" if any celeb that you want to
U ll become one if your put your heart into
Never look back cause the black ghost frost you
Like those granny lullaby told you
You become one how life fold you
You become one how life bold you

[img source : http://khalidsnowden.files.wordpress.com]

Wednesday, 17 December 2014

चौराहे पर सीडीया : संजीदा पर उदासीन

कुछ हफ्ते पहले फ्लिपकार्ट पर यूँ ही घूमते हुए मेरे मन मे ना जाने कैसे हिन्दी से वापस परिचित होने का मन किया और मैं वेसे ही हिन्दी नॉवेल्स की सुनसान सी भीड़ मे पहुँच गया! थोड़ा स्क्रोल किया तो एक नॉवेल के शीर्षक और उसके कवर के चित्र ने मुझे सम्मोह लिया, जैसे मैं उसी को ही खोज रहा था! कीशोर चौधरी की लघु कहानिया की पुस्तक - "चौराहे पर सीडीया" बहुत सालो बाद मुझे हिन्दी सहित्य की उन बिछड़ी हुई गलिया मे ले गयी जहाँ कभी मुंशी प्रेम चन्द जी ज़हन को टेहलया करते थे! थोड़ा बहुत नवीनता का वॉर्क चड़ा हुआ है पर वो भी सहित्य पर हावी नही हुआ! साहित्यकार की सारी कहानियो मे उदासीनता एक आम ज़मीन की तरह है! पर कहानिया होकर भी एक नही लगती, सबमे अलग दर्पण है, अलग पहलू है! देखा जाए तो वक़्त को रोक कर गहरे निंदन के बाद हर एक एहसास और हर एक पहलू की गहराई मे जा कर लिखा गया है! कहानिया मे उत्पीड़न,छल-कपट और पीड़ा के साथ साथ ज़हन मे आनी वाली हर दुविधा को बखूबी काग़ज़ पर लिखा गया है! कुछ एक कहानी सुख और हॅसी पर तो सही पर वो हॅसी भी नही, ज़िंदगी पर कसे व्यंग है या फिर तूफान के बाद की शांति है!
वैसे मे भी राजस्थान - जैपुर का निवासी हूँ तो भाषा मेरे लिए व्यावहारिक सी ही है पर भाषा के मामले मे मोज़ार्ट है पर कीशोर साब! हर एक शब्द बखूबी अपनी एहमियत रखता है और हर एक दर्द को जुऊँ-से-त्यु सामने लता है!! कहानियो मे राजस्थान की खुश्बू और गाँव की जीवन शैली को भी बखूबी दिखलाया गया है!
सारी कहानिया भाषा की धनी है, भावना से पूर्ण है पर कहानिया अधूरी है, पीड़ा है उनमे!

अगर आप सिर्फ़ मसाला कहानियो को पढ़कर चटखारे लेना चाहते है तो ये किताब उस तरह की नही है! दिल से अगर पूछ पूछ कर पढ़ेंगे तो ज़हन मे बैठ जाएगी ये किताब!
अभी तक इस किताब का शीर्षक और कवर पेज मेरे ज़हेन मे उलझा हुआ सा है!

Wednesday, 10 December 2014

उन मुलाक़ातो के धब्बे

कुछ गीले-शिकवो की गठरीया छोड़ आया था उसी दरख़्त के छाँव मे रखी बेंच पे जहा आख़िरी बार हम मिले थे! सुना है अब वहाँ आता जाता भी नही है कोई! वो जो दरख़्त था ना, वो भी बूढ़ा हो गया है और बेंच पे अब बस धूल ही बैठा करती है! बड़ी मायूस और सुनसान रहती है वो जगह! कभी कभार गुज़रता हूँ तो मुझसे हज़ार तरीके के सवाल पूछा करती है! पहले तो घूरती है मुझे, जैसे गुस्सा हो, नाराज़ होमुँह-फूला करके नाराज़ बैठ जाती है! पर फिर वहा के किरायेदार 'सन्नाटे' से, मायूसी और खोखलापन ज़ाहिर हो ही जाता है!

 तरह-तरह के बहुत सारे सवाल पूछा करती है, जैसे तुम पूछा करती थी! याद है ना? पता नही बहुत अरसा बीत गया है शायद याद-दाश्त से गुज़र गया हो! या शायद याद-दाश्त के उधदे गदेलो पर नयी ज़िंदगी की साफ-सुधरी नयी डिज़ाइन वाली चादर बिछा दी हो और उसकी चारो कोरे मोढ़ दी हो ताकी उन गदेलो का उड़ा हुआ रंग और फटते हुए रूहे जो झाँकते है पुर्जो से निकल कर, उन पर नज़र ना पड़े! कभी पानी की तरह गुड-मूड होके एक तरफ हो जाते है! एसा कभी-कभार  हमारे रिश्ते मे भी हुआ करता था, तुम सारा गुस्सा अपनी तरफ ले लिया करती थी और मेरी तरफ सिर्फ़ ख़ालीपन बचा रहता था! यही सोच कर फिर मे आगे बढ़ जाता हूँ उस जगह को "अपना ख़याल रखना" और "ज़िंदगी रही तो मिलेंगे" कहके!