नये साल के
कपड़े पहन लिए
है. चलो दुविधाओ
से मुक्त, नयी
दिशाओ को पंख
लगाने के लिए
2015 आ गया है.
कल मुझे बहुत
बुरा लग रहा
था के 1 जन्वरी
जो छुट्टी घोषित
थी कंपनी मे
पर क्यूंकी हमारा
सपोर्ट प्रॉजेक्ट है मतलब
24/7 वक़्त मे क्लाइंट
के साथ सहायक
रहना है. आज
मुझे जाना है
दफ़्तर चाहे कितनी
ही घिंन कर
लो. कल की
पार्टी मे जो
नाचे थे, टाँगे
अभी भी दुख
रही है. देरी
से उठा था
पर ऑफीस जाने
मे भी अभी
कुछ वक़्त है.
पर वो भी
खाने, नहाने, मेसेजस
का जवाब देने
मे दर्याफ़्त हो
चुका था. Whatsapp के
सारे Messages भी
नही पढ़े थे
पर उसका कोई
मतलब भी नही
था, सब एक
ही जैसे थे.
बहुत आजिसी है के
नये साल के
पहले दिन मे
ऑफीस जाना पड़
रहा है. शायद
कुछ ही ऐसे
बद-बदनसीब होंगे
जिनके साथ ऐसा
सुलूक मुनासिब होता
है. गुस्सा भी
बहुत है, पर
वो कहते है
ना नौकरी और
औलाद के सामने
किसी की नही
चलती. तो कितनी
भी रुसवाई हो,
जाना पड़ रहा
है..
Cab आई लेने के
लिए.. .Evening shift थी और
ये मनहूस मौसम
भी इतना ज़ुल्मी
हो रहा है,
हल्की हल्की बारिश
और शून्य उमस.
मजबूरी साहब!
ऑफीस के गेट
से मे जब
दाखिल हुआ तो
जो मेरा ई
डी तफ़तीश करने
वाले सेक्यूरिटी गार्ड्स
वही थे. बारिश
से जो गंदे
जूते के कदम
और छींट फर्श
पर बाक़ी रह
गये थे, उससे
साफ करने वाली
बूढी औरत जो
Cleaning स्टाफ वाली Dress मे थी.
वो भी वही
थी. अपने हुलिए
और मूह-हाथ
ढोने के हिस्सब
से वॉश-रूम
की और बड़ा.
तो वॉशबेसिन और
पेपर रोल को
अपनी जगह रखने
वाल लोग वही
थे. रोशनी कम
थी. स्टाफ भी
कम था. मतलब
बिल्कुल ना के
ही बराबर.
सारे मेल्स चेक करके
जब लंच करने
कॅंटीन मे गया,
वो लोग भी
वही थे.
सब तो वही
थे तो क्यू
मुझे मेरी बदनसीबी
का रोना आ
रहा था. मेरी
ऑफीस के सहकर्मी
नही थे पर
वही सब थे.
कुछ पुराने पड़े कंप्यूटर्स
और वाइरिंग को
दुरुस्त और चेक
करने वेल लोग
भी वही थे.
उन सब की
शकल की लिखावट
मेने पढ़ी नही,पर सच
तो ये है
के मेरी शाकले
पढ़ने की हिम्मत
भी नही हुई.
मे तो सिर्फ़
एक दिन के
ही मजबूरन मोजूद्गी
से इतना खफा
था. बेचारे ये
सब लोग जो
हुमारे सपोर्ट मे सपोर्ट
करते है. अगर
हम मे से
एक भी शख़्स
को रात को
आना पड़ता है,
तो ये बेचारे
भी तो आते
है.
Coorporates का
हिसाब-किताब इसलिए
भी मुझे नही
पसंद.
पर ये मेरी
ख़ुशनसीबी है ये
मेरी पयदैश एक
अच्छे और पढ़े-लिखे कुनबे
मे हुई है.
अच्छी शिक्षा से
इतना फरक पड़
सकता है, आज
उसका ये चेहरा
भी देखना पड़ेगा.
मेरे खुशनसीब होने
का स्लीडेशोव ज़हेन
के सामने झलकने
लगी. पर अंदर
एक खाला सी
हुई के इतना
फरक क्यूँ? काश
मेरी पेदईश कमतर
घराने मे होती
तो क्या मे
कंप्यूटर के सामने
वाली सीट पे
सुकून से बैठ
पता या 10 घंटे
खड़े रहकर सबके
ई डी कार्ड
की तफ़तीश पड़ती.
इतनी एहमियत भी
होती नौकरी की
अगर इतनी आसानी
सी मिल जाती.
जब मे 31 डिसेंबर को
नाच रहा था
और खुशी सी
झूम रहा था
तब आधा जाग
अपने पेट पालने
के लिए काम
कर रहे थे
के उसे रोज़
वो भूके ना
सोए.
नया साल अब
अच्छी सोच के
साथ गुज़रेगा J
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