Sunday, 15 February 2015

आँखे

ये आँखो मे राज़ तुम तमाम रखती हो.
एक कहकशा रखती हो.
एक इल्ज़ाम रखती हो.
मे लिख लेता हूँ नज़्म अक्सर तुम्हारी तारीफ मे टूटी फूटी.
मे तो बयान ही नही कर पता क्या तुम मुकाम रखती हो.
वैसे तो खिलाफत ए ज़ुल्म हूँ मे पर
ये आँखो के सूरमे से हमे अपना गुलाम रखती हो.!

Friday, 13 February 2015

एक वक़्त ऐसा भी था

एक वक़्त था मेरे बचपन का, जब हम मोबाइल, टेबलेट, लॅपटॉप से अंजान से और कंप्यूटर के नाम पे सिर्फ़ Solitaire और M S Paint एस्तेमाल करते थे और वही जानते थे. पर ना आजकल की तरह "बोर हो रहा हू!" वाला पेट डाइलॉग नही हुआ करता था. तब चाहे देश और हम टेक्नालजी मे कम थे पर वक़्त के मामले मे बड़े अमीर हुआ करते थे.
मे तोड़ा बहुत पैसे बचा के कॉमिक्स लाया करता था, कही जगह पे तो रेंट पे भी मिलती थी और घर पर बाल-भास्कर छोटू-मोटू ब बहुत सारी इकखट्टा हो गयी थी महीने-दर-महीने तो पहले जो मे खरीद लेता था..उसी अंतराल के आख़िरी दीनो मे कॉमिक्स रेंट पे लाया करता था. बहेरहाल, वो चाचा चौधरी की कहानिया जिनका दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ चलता है, साबू की ताक़त, बिल्लू जैसा तो मे बड़ा होके बनना चाहता था. उसके साइकल पे स्टंट कॉपी करने के चक्कर मे हाथ पैर तुढवा के आया..पिंकी बड़ी सयानी थी, नागराज, फॅनटम दुश्मनो को मार डालते थे. चंपक. बालहंस. और ना जाने क्या क्या! एक मज़ेदार से दुनिया थी वो भी. और सब मिल कर एक दूसरे को किससे सुनाया करते थे! ये हुआ वो हुआ और कॉमिक्स एक्सचेंज हुआ करती थी.

शेख चिल्ली के किससे, अकबर-बीरबा, पंचतंतरा.. बोरियत तो अब होती है सब कुछ है अपने पास!

पहले पढ़ाई के नाम पे शायद न सी ई र टी की पतली-पतली किताबे थी पर समझदारी और संजीदगी के लिए बहुत कुछ हुआ करता था. ना कोई डबल मीनिंग ना गंदे जोक्स. बस Time-pass के लिए मज़ेदार और रोमांचक किससे कहानिया.

Wednesday, 11 February 2015

कोशिशे

ऐसे लगता है जैसे अंदर ही अंदर एक दिल काँच के मानी टूट ता जा रहा है और उसी के टुकड़े सीने मे चुभ रहे हो और फिर गले मे आते है खलिश बनके जब किसी गुफ्तगू को परवाज़ देने की कोशिश करता हूँ! Puzzles की तरह अनंत कोशिशे करता हूँ सुलझाने की पर जैसे सूरज कैसे बाज़ आ सकता है अपने पाबंद दस्तूर से वैसे ही एक वो खालिश के टुकड़े अटकते है हलक़ मे! दरिया-ए-नील से भी गहरे ख़यालो मे डुबकिया लगती मेरी नफ़ज़ कभी भूल जाती है दोनो जाहानो मे से पहले जहाँ को जिसका भी सफ़र तेय करता है, गुमराह ज़िंदा लाश बनकर नही एक अफ़ज़ल और बेहतर तरीक़ो से जीना पड़ेगा!

ज़िंदगी की इसी जद्दोजेहेद मे ख़याली पुलाओ को पका लेता हूँ, पर ख़ाता नही हूँ!

कोशिशे रहेंगी बेहतर बनने की!

खुदा के साथ साथ खुद को भी खुश रखने की!




Monday, 9 February 2015

नक़ाब

हो रहा बुज़ुर्ग मेरे अब्दर का बचपन. जो कल तक ज़मीन पर रोया था बिलक कर. लोगो से बोलता हू ज़ख़्मी भी है आजकल मुस्कुराहट मेरी मुझसे बात करो पर नक़ाब उतार कर!!!

Rise Above Hate

ये दुनिया नफ़रतो का ढेर है, बिन ने निकलोगे तो हज़ारो मिलेंगी! तुम अपनी नफ़रते छांट लो और तुमसे अलग सोचने वाले अपनी नफ़रते और आपस मे लड़के रहना! ना वो तुम्हारी बात समझ पाएँगे ना तुम उन्ही बात! और ऐसे लड़ते - लड़ते ख़तम हो जाना!


पर क्या रिश्तो मे भी ऐसा ही होता है? बिल्कुल नही! तुम थोड़ा मेरा एतबार रखो, और मे तुम्हारा बावजूद इसके के गुंजाइश बहुत है फ़ास्लो मे, थोड़े कदम तुम बढ़ाओ, तुम हम बढ़ाए!


खैर! गुंजाइशे रखनी पड़ती है हर चीज़ मे!

कोशिशे रखेंगी किसी का दिल ना दुखे!

सच से तो हमेशा वास्ता ही है, पर चाहे तुम निगल सकते हो, कोई और नही!

तो सच भी वक़्त के मुंतज़ीर रहता है, याद रखे!


[Img Source : http://cmster.com/media/jn1ave5tTldLbUyRLV8xyiegmiGPauaFRtI3a14uGMJTbKR4Lx3EGj8AJUxNXoSi.jpg]

उजाला नही

ग़लती की थी वो लिखे हज़ार खत तुम्हारे हवाले ना सही आग के हवाले कर दिए थे.
बस यही सोचकर के सोच तो मिलती नही है ज़िंदगी कैसे मिलेगी :)

अब समझ मे ये नही आता. उन खातो के बुरादो का क्या करू जिस की जलाई हुई यादे अभी तक सवाल तलाश करती है.

वो कहते है ना आँखे बंद करते हो तो अंधेरा आता है उजाला नही...

Thursday, 5 February 2015

Me. Me. Me.

On personal grounds, i am an introvert. i rarely initiates any conversation and even if i try to do, it ends up very much quickly. i talk very less to the people around me especially my office collegues. But, meanwhile, i have a companion who is always with me, who criticize me, procastinate me, investigate many though and we usually trip together in lost thoughts processes and left with certainly no conclusion. That's me itself. i talk to myself. i have my own world inside me who have their own creatures, rules and paradigms. Most importantly, it is having the realest, blunt, rebel and the only version of me. Mehh!!