एक वक़्त था मेरे बचपन का, जब हम मोबाइल, टेबलेट, लॅपटॉप से अंजान से और कंप्यूटर के नाम पे सिर्फ़ Solitaire और M S Paint एस्तेमाल करते थे और वही जानते थे. पर ना आजकल की तरह "बोर हो रहा हू!" वाला पेट डाइलॉग नही हुआ करता था. तब चाहे देश और हम टेक्नालजी मे कम थे पर वक़्त के मामले मे बड़े अमीर हुआ करते थे.
मे तोड़ा बहुत पैसे बचा के कॉमिक्स लाया करता था, कही जगह पे तो रेंट पे भी मिलती थी और घर पर बाल-भास्कर छोटू-मोटू ब बहुत सारी इकखट्टा हो गयी थी महीने-दर-महीने तो पहले जो मे खरीद लेता था..उसी अंतराल के आख़िरी दीनो मे कॉमिक्स रेंट पे लाया करता था. बहेरहाल, वो चाचा चौधरी की कहानिया जिनका दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ चलता है, साबू की ताक़त, बिल्लू जैसा तो मे बड़ा होके बनना चाहता था. उसके साइकल पे स्टंट कॉपी करने के चक्कर मे हाथ पैर तुढवा के आया..पिंकी बड़ी सयानी थी, नागराज, फॅनटम दुश्मनो को मार डालते थे. चंपक. बालहंस. और ना जाने क्या क्या! एक मज़ेदार से दुनिया थी वो भी. और सब मिल कर एक दूसरे को किससे सुनाया करते थे! ये हुआ वो हुआ और कॉमिक्स एक्सचेंज हुआ करती थी.
शेख चिल्ली के किससे, अकबर-बीरबा, पंचतंतरा.. बोरियत तो अब होती है सब कुछ है अपने पास!
पहले पढ़ाई के नाम पे शायद न सी ई र टी की पतली-पतली किताबे थी पर समझदारी और संजीदगी के लिए बहुत कुछ हुआ करता था. ना कोई डबल मीनिंग ना गंदे जोक्स. बस Time-pass के लिए मज़ेदार और रोमांचक किससे कहानिया.
मे तोड़ा बहुत पैसे बचा के कॉमिक्स लाया करता था, कही जगह पे तो रेंट पे भी मिलती थी और घर पर बाल-भास्कर छोटू-मोटू ब बहुत सारी इकखट्टा हो गयी थी महीने-दर-महीने तो पहले जो मे खरीद लेता था..उसी अंतराल के आख़िरी दीनो मे कॉमिक्स रेंट पे लाया करता था. बहेरहाल, वो चाचा चौधरी की कहानिया जिनका दिमाग़ कंप्यूटर से भी तेज़ चलता है, साबू की ताक़त, बिल्लू जैसा तो मे बड़ा होके बनना चाहता था. उसके साइकल पे स्टंट कॉपी करने के चक्कर मे हाथ पैर तुढवा के आया..पिंकी बड़ी सयानी थी, नागराज, फॅनटम दुश्मनो को मार डालते थे. चंपक. बालहंस. और ना जाने क्या क्या! एक मज़ेदार से दुनिया थी वो भी. और सब मिल कर एक दूसरे को किससे सुनाया करते थे! ये हुआ वो हुआ और कॉमिक्स एक्सचेंज हुआ करती थी.
शेख चिल्ली के किससे, अकबर-बीरबा, पंचतंतरा.. बोरियत तो अब होती है सब कुछ है अपने पास!
पहले पढ़ाई के नाम पे शायद न सी ई र टी की पतली-पतली किताबे थी पर समझदारी और संजीदगी के लिए बहुत कुछ हुआ करता था. ना कोई डबल मीनिंग ना गंदे जोक्स. बस Time-pass के लिए मज़ेदार और रोमांचक किससे कहानिया.
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